जिस्म-ए-मस्लूब का यक-लख़्त नया हो जाना

By nomaan-shauqueFebruary 28, 2024
जिस्म-ए-मस्लूब का यक-लख़्त नया हो जाना
सामने आना तिरा जश्न बपा हो जाना
निस्फ़ ईमान पे नाचीज़ टिका है कब से
मान लेता नहीं बंदे का ख़ुदा हो जाना


देर तक उस ने लगाए रखा सीने से मुझे
जिस से सीखा है दरख़्तों ने हरा हो जाना
दुश्मन-ए-जाँ हो अगर ऐसे ख़ुदाओं का हुजूम
हम ने सीखा नहीं राज़ी-ब-रज़ा हो जाना


आज सर काट के जन्नत नहीं माँगी तुम ने
है बुरी बात नमाज़ों का क़ज़ा हो जाना
ऐसे मंसूबे को नाकाम करेंगे हम लोग
इस में शामिल है अगर तेरा ख़ुदा हो जाना


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