जिसे भी हों अदब-आदाब देख सकता है
By jamal-ehsaniFebruary 26, 2024
जिसे भी हों अदब-आदाब देख सकता है
कोई भी शख़्स तिरे ख़्वाब देख सकता है
तिरी निगाह से दुनिया को देखने वाला
चराग़ को पस-ए-मेहराब देख सकता है
ये कह के इज़्न-ए-सफ़र दे दिया गया मुझ को
कि तू सितारे को महताब देख सकता है
दु'आ-ओ-अश्क की गठरी सँभाल के रखना
किसी भी वक़्त वो अस्बाब देख सकता है
वो जिस ने देख लिया है उसे नज़र-भर के
पस-ए-ग़ुबार-ओ-तह-ए-आब देख सकता है
न अपने हिज्र में पज़मुर्दा पा के ख़ुश है हमें
न अपने वस्ल में शादाब देख सकता है
न चाहता है कि हम हालत-ए-सुकूँ में रहें
न अपने 'इश्क़ में बेताब देख सकता है
'जमाल' जिस को भी शक हो हमारी बातों पर
हमारा हल्क़ा-ए-अहबाब देख सकता है
कोई भी शख़्स तिरे ख़्वाब देख सकता है
तिरी निगाह से दुनिया को देखने वाला
चराग़ को पस-ए-मेहराब देख सकता है
ये कह के इज़्न-ए-सफ़र दे दिया गया मुझ को
कि तू सितारे को महताब देख सकता है
दु'आ-ओ-अश्क की गठरी सँभाल के रखना
किसी भी वक़्त वो अस्बाब देख सकता है
वो जिस ने देख लिया है उसे नज़र-भर के
पस-ए-ग़ुबार-ओ-तह-ए-आब देख सकता है
न अपने हिज्र में पज़मुर्दा पा के ख़ुश है हमें
न अपने वस्ल में शादाब देख सकता है
न चाहता है कि हम हालत-ए-सुकूँ में रहें
न अपने 'इश्क़ में बेताब देख सकता है
'जमाल' जिस को भी शक हो हमारी बातों पर
हमारा हल्क़ा-ए-अहबाब देख सकता है
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