जब से कोई मिरा हम-सफ़र हो गया
By rizwan-aliFebruary 28, 2024
जब से कोई मिरा हम-सफ़र हो गया
ज़िंदगी का सफ़र मो'तबर हो गया
मो'तबर हो के ना-मो'तबर हो गया
किस की चाहत में मैं दर-ब-दर हो गया
तुम ने आने की ज़हमत गवारा जो की
मिस्ल फ़िरदौस के मेरा घर हो गया
मुश्किलें जिस क़दर रास्तों की बढ़ीं
और आसाँ हमारा सफ़र हो गया
जिस पे भी हो गया उस नज़र का करम
अपनी ही ज़ात से बे-ख़बर हो गया
मुझ को देखा है उस ने किस अंदाज़ से
दिल में पैवस्त तीर-ए-नज़र हो गया
क़ाफ़िले का हर इक फ़र्द है मुंतशिर
ग़म न जाने कहाँ राहबर हो गया
जब से ‘रिज़वाँ’ हुआ साहब-ए-सीम-ओ-ज़र
उस का जो 'ऐब था वो हुनर हो गया
ज़िंदगी का सफ़र मो'तबर हो गया
मो'तबर हो के ना-मो'तबर हो गया
किस की चाहत में मैं दर-ब-दर हो गया
तुम ने आने की ज़हमत गवारा जो की
मिस्ल फ़िरदौस के मेरा घर हो गया
मुश्किलें जिस क़दर रास्तों की बढ़ीं
और आसाँ हमारा सफ़र हो गया
जिस पे भी हो गया उस नज़र का करम
अपनी ही ज़ात से बे-ख़बर हो गया
मुझ को देखा है उस ने किस अंदाज़ से
दिल में पैवस्त तीर-ए-नज़र हो गया
क़ाफ़िले का हर इक फ़र्द है मुंतशिर
ग़म न जाने कहाँ राहबर हो गया
जब से ‘रिज़वाँ’ हुआ साहब-ए-सीम-ओ-ज़र
उस का जो 'ऐब था वो हुनर हो गया
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