इतनी रग़बत से न मिल 'इश्क़ के बीमारों से
By noman-badrFebruary 28, 2024
इतनी रग़बत से न मिल 'इश्क़ के बीमारों से
आग तुझ में भी भड़क सकती है अंगारों से
किस को मुझ दश्त से आसाइश-ए-जाँ पहुँचेगी
कौन ख़ुश होता है दुनिया में गुनहगारों से
दस्तरस में तो बहुत कुछ था मगर तेरे बा'द
हम ने ख़ुशबू भी ख़रीदी नहीं बाज़ारों से
तू ने देखा भी नहीं आ के दुबारा मुझ को
ऐसे करता है भला कोई वफ़ादारों से
ये तो हम हैं तिरी आँखों पे मरे बैठे हैं
वर्ना अब कोई नहीं खेलता तलवारों से
होंट से कान की लौ तक तुम्हें चूमेंगे कभी
हम तुम्हें फ़त्ह करेंगे तिरे हथियारों से
आग तुझ में भी भड़क सकती है अंगारों से
किस को मुझ दश्त से आसाइश-ए-जाँ पहुँचेगी
कौन ख़ुश होता है दुनिया में गुनहगारों से
दस्तरस में तो बहुत कुछ था मगर तेरे बा'द
हम ने ख़ुशबू भी ख़रीदी नहीं बाज़ारों से
तू ने देखा भी नहीं आ के दुबारा मुझ को
ऐसे करता है भला कोई वफ़ादारों से
ये तो हम हैं तिरी आँखों पे मरे बैठे हैं
वर्ना अब कोई नहीं खेलता तलवारों से
होंट से कान की लौ तक तुम्हें चूमेंगे कभी
हम तुम्हें फ़त्ह करेंगे तिरे हथियारों से
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