'इश्क़ में राह से जो लौट के घर जाता है

By jamal-ehsaniFebruary 26, 2024
'इश्क़ में राह से जो लौट के घर जाता है
ज़िंदगी-भर को पस-ए-कूचा-ओ-दर जाता है
लोग इस शहर के अब कम ही दु'आ माँगते हैं
चाँद इस शहर से अब यूँही गुज़र जाता है


हिज्र में ऐसे अंधेरे भी न देखे कोई
दिल मुंडेरों पे दिये देख के डर जाता है
रोज़ चढ़ जाती है इक और परत सूरज की
रोज़ दीवार से इक साया उतर जाता है


कैसी नींदें हैं कि बंद आँखें जगाती हैं मुझे
कैसा सपना है कि हर रात बिखर जाता है
यूँ गुज़रता है बस अब दिल से तिरे वस्ल का ध्यान
जैसे परदेस में त्यौहार गुज़र जाता है


कासा-ए-रंज हमेशा रहा लबरेज़ 'जमाल'
आँख ख़ाली हो तो दिल दर्द से भर जाता है
43899 viewsghazalHindi