इस त'अल्लुक़ को निभाओ तो कोई शे'र कहूँ
By hamza-bilalFebruary 26, 2024
इस त'अल्लुक़ को निभाओ तो कोई शे'र कहूँ
तुम अगर सामने आओ तो कोई शे'र कहूँ
डूब जाने पे ही गहराई पता चलती है
आँख से आँख मिलाओ तो कोई शे'र कहूँ
मैं किसी मोनालीज़ा का नहीं क़ाइल जानाँ
अपनी तस्वीर दिखाओ तो कोई शे'र कहूँ
आप की चुप से हैं ख़ामोश फ़ज़ाएँ सारी
आप होंटों को हिलाओ तो कोई शे'र कहूँ
तुम सितारों को गिनो और मैं देखूँ तुम को
साथ इक रात बिताओ तो कोई शे'र कहूँ
हज़रत-ए-क़ैस को कल शहर में देखा तो कहा
दश्त में ख़ाक उड़ाओ तो कोई शे'र कहूँ
वस्ल के दौर में कब शे'र हुआ करते हैं
तुम मुझे छोड़ के जाओ तो कोई शे'र कहूँ
तुम अगर सामने आओ तो कोई शे'र कहूँ
डूब जाने पे ही गहराई पता चलती है
आँख से आँख मिलाओ तो कोई शे'र कहूँ
मैं किसी मोनालीज़ा का नहीं क़ाइल जानाँ
अपनी तस्वीर दिखाओ तो कोई शे'र कहूँ
आप की चुप से हैं ख़ामोश फ़ज़ाएँ सारी
आप होंटों को हिलाओ तो कोई शे'र कहूँ
तुम सितारों को गिनो और मैं देखूँ तुम को
साथ इक रात बिताओ तो कोई शे'र कहूँ
हज़रत-ए-क़ैस को कल शहर में देखा तो कहा
दश्त में ख़ाक उड़ाओ तो कोई शे'र कहूँ
वस्ल के दौर में कब शे'र हुआ करते हैं
तुम मुझे छोड़ के जाओ तो कोई शे'र कहूँ
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