हम ज़ीस्त 'ऐन-ए-मर्ज़ी-ए-यज़्दाँ न कर सके
By rana-khalid-mahmood-qaiserFebruary 28, 2024
हम ज़ीस्त 'ऐन-ए-मर्ज़ी-ए-यज़्दाँ न कर सके
बख़्शिश का अपनी कोई भी सामाँ न कर सके
तकमील-ए-आरज़ू न हुई बा'द-ए-मर्ग भी
मरक़द पे भी वो ज़ुल्फ़ परेशाँ न कर सके
आख़िर बयान कर ही दिया उस से हाल-ए-दिल
हम एहतियात ता-हद-ए-इम्काँ न कर सके
दा'वा तो करना 'इश्क़ का कार-ए-फ़ुज़ूल है
क़ुर्बान जब किसी पे दिल-ओ-जाँ न कर सके
हम कितने बद-नसीब हैं जब भी दिए जलाए
वो आँधियाँ चलीं कि चराग़ाँ न कर सके
महफ़िल से बार बार उठाए गए मगर
तर्क-ए-ख़याल-ए-महफ़िल-ए-जानाँ न कर सके
कश्ती के डूब जाने का 'क़ैसर' उन्हें है ग़म
जो लोग फ़िक्र-ए-आमद-ए-तूफ़ाँ न कर सके
बख़्शिश का अपनी कोई भी सामाँ न कर सके
तकमील-ए-आरज़ू न हुई बा'द-ए-मर्ग भी
मरक़द पे भी वो ज़ुल्फ़ परेशाँ न कर सके
आख़िर बयान कर ही दिया उस से हाल-ए-दिल
हम एहतियात ता-हद-ए-इम्काँ न कर सके
दा'वा तो करना 'इश्क़ का कार-ए-फ़ुज़ूल है
क़ुर्बान जब किसी पे दिल-ओ-जाँ न कर सके
हम कितने बद-नसीब हैं जब भी दिए जलाए
वो आँधियाँ चलीं कि चराग़ाँ न कर सके
महफ़िल से बार बार उठाए गए मगर
तर्क-ए-ख़याल-ए-महफ़िल-ए-जानाँ न कर सके
कश्ती के डूब जाने का 'क़ैसर' उन्हें है ग़म
जो लोग फ़िक्र-ए-आमद-ए-तूफ़ाँ न कर सके
98133 viewsghazal • Hindi