हो लाग दरमियाँ तो कोई दिल भी तब लगाए

By sarmad-sahbaiFebruary 29, 2024
हो लाग दरमियाँ तो कोई दिल भी तब लगाए
बैठे रहो उमीद यूँही बे-सबब लगाए
जो क़र्ज़-ए-हिज्र सौंप गया 'उम्र के 'एवज़
शर्त-ए-विसाल उस से कहीं बे-तलब लगाए


किस जेब-ए-एहतियात में रक्खें मता-ए-दिल
बैठा नहीं कहाँ पे वो रहज़न नक़ब लगाए
खुलता नहीं है उक़्दा शब-ए-इंतिज़ार का
यारों ने दाव पेच यहाँ सब के सब लगाए


चारों तरफ़ है आग मगर दरमियान-ए-शहर
बैठा है यार मज्लिस-ए-जश्न-ए-तरब लगाए
बाज़ार-ए-'इश्क़ सर्द पड़ा नज़्र-ए-जाँ के बा'द
अब कोई नक़्द-ए-नाम या नक़्द-ए-नसब लगाए


फिरते हैं ले के बिन्त-ए-फ़साहत को मीरज़ा
अपने तईं ख़ुदा-ए-सुख़न का लक़ब लगाए
इस ख़्वांचा-ए-सुख़न पे तो 'सरमद' गुज़र नहीं
उस से कहें हमें वो किसी और ढब लगाए


23718 viewsghazalHindi