हवा बहुत तेज़ चल रही है मैं ख़ुद को भी तेज़ कर रहा हूँ
By farhat-ehsasFebruary 6, 2024
हवा बहुत तेज़ चल रही है मैं ख़ुद को भी तेज़ कर रहा हूँ
कि अपने अन्दर की इंतिहाओं को और महमेज़ कर रहा हूँ
बदन हूँ मैं और बदन ज़मीं है ज़मीं में करता हूँ काश्त-कारी
जो मुझ को बंजर दिया गया था मैं उस को ज़रख़ेज़ कर रहा हूँ
बना रहा हूँ तुझे वो कुर्सी मैं जिस पे लिखने को बैठता था
तू मुझ को तस्नीफ़ दे कि ख़ुद को तिरे लिए मेज़ कर रहा हूँ
तुझे पता भी नहीं चलेगा कि मेरा मज्ज़ूब हो गया तू
मैं तेरी मिट्टी को अपने पानी में यूँ हम-आमेज़ कर रहा हूँ
बना रहा हूँ मैं 'फ़रहत-उल्लाह-ख़ाँ' के लफ़्ज़ों को 'फ़रहत-एहसास'
कहीं हो रूमी कोई तो सुन ले कि ख़ुद को तबरेज़ कर रहा हूँ
कि अपने अन्दर की इंतिहाओं को और महमेज़ कर रहा हूँ
बदन हूँ मैं और बदन ज़मीं है ज़मीं में करता हूँ काश्त-कारी
जो मुझ को बंजर दिया गया था मैं उस को ज़रख़ेज़ कर रहा हूँ
बना रहा हूँ तुझे वो कुर्सी मैं जिस पे लिखने को बैठता था
तू मुझ को तस्नीफ़ दे कि ख़ुद को तिरे लिए मेज़ कर रहा हूँ
तुझे पता भी नहीं चलेगा कि मेरा मज्ज़ूब हो गया तू
मैं तेरी मिट्टी को अपने पानी में यूँ हम-आमेज़ कर रहा हूँ
बना रहा हूँ मैं 'फ़रहत-उल्लाह-ख़ाँ' के लफ़्ज़ों को 'फ़रहत-एहसास'
कहीं हो रूमी कोई तो सुन ले कि ख़ुद को तबरेज़ कर रहा हूँ
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