हौसले ज़िंदगी के देखते हैं

By rahat-indoriMarch 18, 2024
हौसले ज़िंदगी के देखते हैं
चलिए कुछ रोज़ जी के देखते हैं
नींद पिछली सदी की ज़ख़्मी है
ख़्वाब अगली सदी के देखते हैं


रोज़ हम इक अँधेरी धुंद के पार
क़ाफ़िले रौशनी के देखते हैं
धूप इतनी कराहती क्यूँ है
छाँव के ज़ख़्म सी के देखते हैं


टिकटिकी बाँध ली है आँखों ने
रास्ते वापसी के देखते हैं
पानियों से तो प्यास बुझती नहीं
आइए ज़हर पी के देखते हैं


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