हरे हुए नहीं अतराफ़ के शजर मेरे

By haris-bilalFebruary 6, 2024
हरे हुए नहीं अतराफ़ के शजर मेरे
मुझे तो यूँ भी इज़ाफ़ी हैं बाल-ओ-पर मेरे
भटकने वाले भी इक रोज़ घर पहुँचते हैं
बता रहा था कोई हाथ देख कर मेरे


कुछ इस लिए भी मुझे रास्ता दुरुस्त लगा
चले नहीं थे मिरे साथ हम-सफ़र मेरे
बिछड़ने पर मिरी पोरों से ख़ून रिसने लगा
क़रीब रहने लगा था वो इस क़दर मेरे


मैं अपनी खोज में निकला था रफ़्तगाँ की तरफ़
बिखर गए हैं ज़माने इधर उधर मेरे
फ़रोख़्त होने पे आमादा हो गया आख़िर
मुझे चराग़ न कहते थे कूज़ा-गर मेरे


57348 viewsghazalHindi