हक़ में तिरे ऐ ज़ीस्त दु'आ कर चुके हैं हम
By nazar-dwivediFebruary 27, 2024
हक़ में तिरे ऐ ज़ीस्त दु'आ कर चुके हैं हम
तेरा हर एक क़र्ज़ अदा कर चुके हैं हम
जीने को जी रहे हैं मगर इस तरह से अब
अपने बदन से जाँ को रिहा कर चुके हैं हम
लाया उसी के पास ही फिर से हमें ये वक़्त
जिस से हज़ारों बार गिला कर चुके हैं हम
मुश्किल है अपने आप पे करना यक़ीन अब
ख़ुद से भी कितनी बार दग़ा कर चुके हैं हम
बेहतर है उस के ज़िक्र पे ख़ामोश ही रहें
किस ने किया था क़त्ल पता कर चुके हैं हम
हम ने किया क़ुबूल 'अदालत में शौक़ से
दे दो सज़ा-ए-मौत ख़ता कर चुके हैं हम
आते हैं जितने काम 'नज़र' दोस्त आज-कल
इतना तो दुश्मनों का भला कर चुके हैं हम
तेरा हर एक क़र्ज़ अदा कर चुके हैं हम
जीने को जी रहे हैं मगर इस तरह से अब
अपने बदन से जाँ को रिहा कर चुके हैं हम
लाया उसी के पास ही फिर से हमें ये वक़्त
जिस से हज़ारों बार गिला कर चुके हैं हम
मुश्किल है अपने आप पे करना यक़ीन अब
ख़ुद से भी कितनी बार दग़ा कर चुके हैं हम
बेहतर है उस के ज़िक्र पे ख़ामोश ही रहें
किस ने किया था क़त्ल पता कर चुके हैं हम
हम ने किया क़ुबूल 'अदालत में शौक़ से
दे दो सज़ा-ए-मौत ख़ता कर चुके हैं हम
आते हैं जितने काम 'नज़र' दोस्त आज-कल
इतना तो दुश्मनों का भला कर चुके हैं हम
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