हमें अब हिज्र उस का खल रहा है क्या किया जाए
By hamza-bilalFebruary 26, 2024
हमें अब हिज्र उस का खल रहा है क्या किया जाए
जो वा'दा वस्ल का था टल रहा है क्या किया जाए
कभी जिस की बदौलत हम को सब आदाब करते थे
बुलंदी का वो सूरज ढल रहा है क्या किया जाए
तिरी प्यारी सी सूरत को बसाते दिल के मंदिर में
मगर तू आँख से ओझल रहा है क्या किया जाए
मैं सारी हसरतों को दफ़्न तो कर आया हूँ लेकिन
तुम्हारा ख़्वाब दिल में पल रहा है क्या किया जाए
न रावन है कहानी में न सीता ज़िंदगानी में
मगर बनवास फिर भी चल रहा है क्या किया जाए
जो वा'दा वस्ल का था टल रहा है क्या किया जाए
कभी जिस की बदौलत हम को सब आदाब करते थे
बुलंदी का वो सूरज ढल रहा है क्या किया जाए
तिरी प्यारी सी सूरत को बसाते दिल के मंदिर में
मगर तू आँख से ओझल रहा है क्या किया जाए
मैं सारी हसरतों को दफ़्न तो कर आया हूँ लेकिन
तुम्हारा ख़्वाब दिल में पल रहा है क्या किया जाए
न रावन है कहानी में न सीता ज़िंदगानी में
मगर बनवास फिर भी चल रहा है क्या किया जाए
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