हमारी छत पे भी सूरज का इंतिज़ाम हुआ

By hamza-bilalFebruary 26, 2024
हमारी छत पे भी सूरज का इंतिज़ाम हुआ
ये और बात कि ये काम वक़्त-ए-शाम हुआ
उठे रक़ीब तो फिर मुझ से बैठने को कहा
तुम्हारी बज़्म में यूँ मेरा एहतिराम हुआ


सफ़र में तुम से किनारा किया तुम्हारे लिए
मगर बिछड़ने का अफ़सोस गाम गाम हुआ
कि जैसे डाँट दे कोई यतीम बच्चे को
हमारी हसरत-ए-दिल का यूँ इख़्तिताम हुआ


हमारे दिल को दिखाई गई नई दुनिया
कुछ इस तरह ये परिंदा भी ज़ेर-ए-दाम हुआ
बिछड़ के तुझ से हुनर शा'इरी का सीख लिया
यूँ अहल-ए-दर्द के जीने का इंतिज़ाम हुआ


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