हमारा ख़्वाब कुछ कुछ और है ता'बीर आँखों में
By farhat-ehsasFebruary 6, 2024
हमारा ख़्वाब कुछ कुछ और है ता'बीर आँखों में
लिए फिरते हैं शायद हम ग़लत तस्वीर आँखों में
बहुत हैं तंग हम आवारगी-ए-दीद से अपनी
कोई सूरत नहीं जो डाल दे ज़ंजीर आँखों में
'अजब मज्लिस अज़ा की है कि मजमा' कम नहीं होता
मुसलसल आँसुओं की है वही तक़रीर आँखों में
मोहब्बत देखनी हो तो उन आँखों पर नज़र रक्खो
अचानक ही उभर आती है ये तहरीर आँखों में
भुला बैठा हूँ सारे ख़्वाब जो कल रात देखे थे
कि मेरी सुब्ह ने कर दी बहुत ताख़ीर आँखों में
उसी से मेरे दिन के ख़्वाब को ता'बीर मिलती है
मैं सारी रात करता हूँ जो कुछ ता'मीर आँखों में
कुछ इतनी ज़ोर से भींचा है आग़ो-ए-ख़मोशी ने
कि खिंच कर आ गई लफ़्ज़ों की सब तासीर आँखों में
लिए फिरते हैं शायद हम ग़लत तस्वीर आँखों में
बहुत हैं तंग हम आवारगी-ए-दीद से अपनी
कोई सूरत नहीं जो डाल दे ज़ंजीर आँखों में
'अजब मज्लिस अज़ा की है कि मजमा' कम नहीं होता
मुसलसल आँसुओं की है वही तक़रीर आँखों में
मोहब्बत देखनी हो तो उन आँखों पर नज़र रक्खो
अचानक ही उभर आती है ये तहरीर आँखों में
भुला बैठा हूँ सारे ख़्वाब जो कल रात देखे थे
कि मेरी सुब्ह ने कर दी बहुत ताख़ीर आँखों में
उसी से मेरे दिन के ख़्वाब को ता'बीर मिलती है
मैं सारी रात करता हूँ जो कुछ ता'मीर आँखों में
कुछ इतनी ज़ोर से भींचा है आग़ो-ए-ख़मोशी ने
कि खिंच कर आ गई लफ़्ज़ों की सब तासीर आँखों में
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