ग़ुरूर-ए-कातिब-ए-तक़दीर तोड़ डालते हैं

By farhat-ehsasFebruary 26, 2024
ग़ुरूर-ए-कातिब-ए-तक़दीर तोड़ डालते हैं
चलो ये आबला-ए-बख़्त फोड़ डालते हैं
जो हम ने देखा उसे कोई और क्यों देखे
हम उस के जाते ही आईना तोड़ डालते हैं


रक़ीब हैं तिरे कूचे के सब सग-ए-दुनिया
जो 'आशिक़ आता है उस को भंभोड़ डालते हैं
बिगड़ने देते नहीं हम मोहब्बतों का हिसाब
मकान-ए-नफ़' ख़सारों से तोड़ डालते हैं


करे जो एक भी नेकी तो उस के खाते में
हम अपनी नेकियाँ लाखों करोड़ डालते हैं
न बच रहे कहीं मा'नी के नूर की कोई बूँद
हम अपना क़ाफ़िया इतना निचोड़ डालते हैं


हमारी नींद से हम को उठा नहीं पाते
ये ज़लज़ले जो ज़मीं को झिंझोड़ डालते हैं
सिवाए 'इश्क़ किसी काम के नहीं 'एहसास'
कोई भी काम दिया जाए गोड़ डालते हैं


47147 viewsghazalHindi