फ़ितरतन अपने ही 'आलम से थी घबराई हुई
By rana-khalid-mahmood-qaiserFebruary 28, 2024
फ़ितरतन अपने ही 'आलम से थी घबराई हुई
वो नज़र मेरे तसव्वुर में थी शर्माई हुई
एक 'आलम था निगाह-ए-शौक़ के ए'जाज़ का
अब अदा-ए-हुस्न-ए-जल्वा आप की छाई हुई
देखने वालों ने देखा है तड़पता रात-दिन
ये मुसीबत मेरे सर पर आप की लाई हुई
कर गई महफ़िल मो'अत्तर ज़ुल्फ़ लहराते हुए
फूल की ख़ुशबू थी या थी ज़ुल्फ़ महकाई हुई
इस क़दर शोहरत मिली सब का फ़साना हो गई
दास्ताँ मेरी ज़बान-ए-शौक़ पर आई हुई
आरज़ूओं का लहू आँखों से ज़ाहिर हो गया
हर कली थी गुलशन-ए-हस्ती में कुम्हलाई हुई
आप की बातों पे वो भी ग़ौर फ़रमाने लगे
आप की बातों में 'क़ैसर' कितनी गहराई हुई
वो नज़र मेरे तसव्वुर में थी शर्माई हुई
एक 'आलम था निगाह-ए-शौक़ के ए'जाज़ का
अब अदा-ए-हुस्न-ए-जल्वा आप की छाई हुई
देखने वालों ने देखा है तड़पता रात-दिन
ये मुसीबत मेरे सर पर आप की लाई हुई
कर गई महफ़िल मो'अत्तर ज़ुल्फ़ लहराते हुए
फूल की ख़ुशबू थी या थी ज़ुल्फ़ महकाई हुई
इस क़दर शोहरत मिली सब का फ़साना हो गई
दास्ताँ मेरी ज़बान-ए-शौक़ पर आई हुई
आरज़ूओं का लहू आँखों से ज़ाहिर हो गया
हर कली थी गुलशन-ए-हस्ती में कुम्हलाई हुई
आप की बातों पे वो भी ग़ौर फ़रमाने लगे
आप की बातों में 'क़ैसर' कितनी गहराई हुई
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