एक रात आती है एक रात जाती है

By nushur-wahidiFebruary 28, 2024
एक रात आती है एक रात जाती है
गेसुओं के साए में किस को नींद आती है
सिलसिला ग़म-ए-दिल का बे-सबब नज़र आया
शम' से कोई पूछे क्यों लहू जलाती है


हुस्न से भी कुछ बढ़ कर बे-नियाज़ है ये ग़म
दाग़-ए-दिल मोहब्बत भी गिन के भूल जाती है
नाम पड़ गया उस का कूचा-ए-हरम लेकिन
ये गली भी ऐ ज़ाहिद मय-कदे को जाती है


चलते चलते नब्ज़-ए-ग़म डूबती है यूँ अक्सर
इक थके मुसाफ़िर को जैसे नींद आती है
हाथ रखती जाती है यास दिल के दाग़ों पर
मैं दिया जलाता हूँ वो दिया बुझाती है


मिट गए 'नुशूर' आ कर ज़ेहन में हज़ारों ग़म
शे’रियत का 'आलम भी रम्ज़-ए-बे-सबाती है
34495 viewsghazalHindi