इक न इक शाख़ तमन्ना की हरी रहती है
By irfan-aazmiFebruary 6, 2024
इक न इक शाख़ तमन्ना की हरी रहती है
फूल मिल जाए तो काँटों की कमी रहती है
दस्त-ए-क़ाबू से बहुत दूर निकल जाती है
दिल में जो हसरत-ए-नाकाम दबी रहती है
ऐसा लगता है कि दुनिया ने सताया है बहुत
हर दम उस शख़्स के होंटों पे हँसी रहती है
‘अद्ल-ओ-इंसाफ़ शहंशाह के ऐवाँ में कहाँ
देखने के लिए ज़ंजीर लगी रहती है
तेरी यादों के सिवा कौन यहाँ आता है
किस की ख़ुशबू मिरे कमरे में बसी रहती है
'इश्क़ हर आन हवादिस में घिरा रहता है
हुस्न वालों को मोहब्बत की पड़ी रहती है
गुज़र-औक़ात की क्या पूछ रहे हो 'इरफ़ान'
दिन गुज़रते हैं मगर रात खड़ी रहती है
फूल मिल जाए तो काँटों की कमी रहती है
दस्त-ए-क़ाबू से बहुत दूर निकल जाती है
दिल में जो हसरत-ए-नाकाम दबी रहती है
ऐसा लगता है कि दुनिया ने सताया है बहुत
हर दम उस शख़्स के होंटों पे हँसी रहती है
‘अद्ल-ओ-इंसाफ़ शहंशाह के ऐवाँ में कहाँ
देखने के लिए ज़ंजीर लगी रहती है
तेरी यादों के सिवा कौन यहाँ आता है
किस की ख़ुशबू मिरे कमरे में बसी रहती है
'इश्क़ हर आन हवादिस में घिरा रहता है
हुस्न वालों को मोहब्बत की पड़ी रहती है
गुज़र-औक़ात की क्या पूछ रहे हो 'इरफ़ान'
दिन गुज़रते हैं मगर रात खड़ी रहती है
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