दुख तो ये है ज़िंदगी का ख़्वाब पूरा रह गया

By azwar-shiraziFebruary 26, 2024
दुख तो ये है ज़िंदगी का ख़्वाब पूरा रह गया
तू मुकम्मल हो गई और मैं अधूरा रह गया
मुझ को बचपन से ही लोगों की समझ आने लगी
सो किसी ने बात जो भी की मैं ज़ेर-ए-तह गया


अब मिरे अंदर ख़स-ओ-ख़ाशाक तक बाक़ी नहीं
अश्क बन कर वो मिरी आँखों से इतना बह गया
मुझ सा बद-क़िस्मत न कोई होगा तेरे शहर में
जो घरौंदा ख़्वाब का मैं ने बनाया ढह गया


सोचता हूँ चुप लगी शक्लों की हालत देख कर
बच गया वो जिस के मुँह में जो भी आई कह गया
अब मुझे वो ज़ख़्म दे जो मौत का बा'इस बने
वर्ना तेरा हिज्र तो मेरा कलेजा सह गया


70783 viewsghazalHindi