दिन के हंगामों में दुनिया थी तमाशाई मिरी
By salim-saleemFebruary 28, 2024
दिन के हंगामों में दुनिया थी तमाशाई मिरी
फिर वही मैं था वही रात की तन्हाई मिरी
मुझ में सर-गर्म है इक मा'रका-ए-कर्ब-ओ-बला
और मिरी फ़त्ह हुई जाती है पसपाई मिरी
अपने ही आप में डूबा हूँ न जाने कितना
ज़िंदगी नाप रही है अभी गहराई मिरी
डूबने और उभरने का तमाशा था मिरा
और इक भीड़ थी साहिल पे तमाशाई मिरी
जुर्म ये था कि उसे देख लिया था यूँही
और सज़ा ये है कि जाती रही बीनाई मिरी
फिर वही मैं था वही रात की तन्हाई मिरी
मुझ में सर-गर्म है इक मा'रका-ए-कर्ब-ओ-बला
और मिरी फ़त्ह हुई जाती है पसपाई मिरी
अपने ही आप में डूबा हूँ न जाने कितना
ज़िंदगी नाप रही है अभी गहराई मिरी
डूबने और उभरने का तमाशा था मिरा
और इक भीड़ थी साहिल पे तमाशाई मिरी
जुर्म ये था कि उसे देख लिया था यूँही
और सज़ा ये है कि जाती रही बीनाई मिरी
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