दिल से इक पल भी जुदा हो ये गवारा ही नहीं
By kaleem-aajizFebruary 27, 2024
दिल से इक पल भी जुदा हो ये गवारा ही नहीं
हम को अब दर्द से बढ़ कर कोई प्यारा ही नहीं
तेरे ग़म ने किया ये हाल ख़ुशी है इस की
रंज इस का है कि ये हाल हमारा ही नहीं
हम जो मरते हैं मोहब्बत में तो मरने दीजे
इस में मरने के 'अलावा कोई चारा ही नहीं
आज दुनिया में बड़ी बात है इज़हार-ए-वफ़ा
क्या करें हम को ये तौहीन गवारा ही नहीं
ये तो इक फ़र्ज़ था ऐ गेसु-ए-दौराँ अपना
हम ने उजरत के लिए तुझ को सँवारा ही नहीं
ऐसा कुछ लुत्फ़ मिला 'इश्क़ की मज़दूरी में
दर्द का बोझ कभी सर से उतारा ही नहीं
ख़ूब आगाह तक़ाज़ा-ए-जुनूँ से हम हैं
क्या बताएँ अभी मौसम का इशारा ही नहीं
शर्म होगी तो ख़ुद आएगी पलट कर 'आजिज़'
हम ने जाती हुई दुनिया को पुकारा ही नहीं
हम को अब दर्द से बढ़ कर कोई प्यारा ही नहीं
तेरे ग़म ने किया ये हाल ख़ुशी है इस की
रंज इस का है कि ये हाल हमारा ही नहीं
हम जो मरते हैं मोहब्बत में तो मरने दीजे
इस में मरने के 'अलावा कोई चारा ही नहीं
आज दुनिया में बड़ी बात है इज़हार-ए-वफ़ा
क्या करें हम को ये तौहीन गवारा ही नहीं
ये तो इक फ़र्ज़ था ऐ गेसु-ए-दौराँ अपना
हम ने उजरत के लिए तुझ को सँवारा ही नहीं
ऐसा कुछ लुत्फ़ मिला 'इश्क़ की मज़दूरी में
दर्द का बोझ कभी सर से उतारा ही नहीं
ख़ूब आगाह तक़ाज़ा-ए-जुनूँ से हम हैं
क्या बताएँ अभी मौसम का इशारा ही नहीं
शर्म होगी तो ख़ुद आएगी पलट कर 'आजिज़'
हम ने जाती हुई दुनिया को पुकारा ही नहीं
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