चमन की बुलबुलें हैं सोगवार मुद्दत से
By tariq-islam-kukraviMarch 1, 2024
चमन की बुलबुलें हैं सोगवार मुद्दत से
हर एक चश्म है सू-ए-बहार मुद्दत से
हमारे दिल की लगी को बुझाइये आ कर
भड़क रहे हैं मुसलसल शरार मुद्दत से
तुम्हारी याद से दिल को क़रार है लेकिन
तुम्हारे आने का है इंतिज़ार मुद्दत से
दु'आओं को मिरे मौला तू पुर-असर कर दे
खड़ा है दर पे तिरे ख़ाकसार मुद्दत से
हर इक तबीब की तदबीर बे-असर निकली
कहीं मिला नहीं दिल को क़रार मुद्दत से
हमारा शजरा भी मिलता है उस के शजरे से
वो जिस का दिल में बना है मज़ार मुद्दत से
वो दूर जाता है 'तारिक़' तो जान जाती है
वो जिस पे आप को आता है प्यार मुद्दत से
हर एक चश्म है सू-ए-बहार मुद्दत से
हमारे दिल की लगी को बुझाइये आ कर
भड़क रहे हैं मुसलसल शरार मुद्दत से
तुम्हारी याद से दिल को क़रार है लेकिन
तुम्हारे आने का है इंतिज़ार मुद्दत से
दु'आओं को मिरे मौला तू पुर-असर कर दे
खड़ा है दर पे तिरे ख़ाकसार मुद्दत से
हर इक तबीब की तदबीर बे-असर निकली
कहीं मिला नहीं दिल को क़रार मुद्दत से
हमारा शजरा भी मिलता है उस के शजरे से
वो जिस का दिल में बना है मज़ार मुद्दत से
वो दूर जाता है 'तारिक़' तो जान जाती है
वो जिस पे आप को आता है प्यार मुद्दत से
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