चाहे बे-नूर हों आँखों से भी ख़ुश होते हैं

By nomaan-shauqueFebruary 27, 2024
चाहे बे-नूर हों आँखों से भी ख़ुश होते हैं
हम तो बू-जहल के फ़तवों से भी ख़ुश होते हैं
ये सजावट के जो बाज़ार हैं बेकार नहीं
होंगे कुछ लोग जो चेहरों से भी ख़ुश होते हैं


हर नया लम्हा त'आक़ुब में है ता'बीरों की
हम वो जागे हैं जो ख़्वाबों से भी ख़ुश होते हैं
ऐसे ही फूट के रोएगा कोई उन के लिए
लोग मजबूर के नालों से भी ख़ुश होते हैं


ये जो हर रोज़ का मरना है मुसीबत है यही
यार हम जैसे तो ज़ख़्मों से भी ख़ुश होते हैं
कोई है जो तिरी औक़ात बताता है तुझे
अब तो हम आइने वालों से भी ख़ुश होते हैं


मुश्क वाले भी चले आते हैं भूले-भटके
ये जो सूफ़ी हैं ग़ज़ालों से भी ख़ुश होते हैं
75324 viewsghazalHindi