बुझती आँखों में हसीं ख़्वाब कहाँ आते हैं

By hamza-bilalFebruary 26, 2024
बुझती आँखों में हसीं ख़्वाब कहाँ आते हैं
अब सर-ए-बाम वो महताब कहाँ आते हैं
बज़्म-ए-अग़्यार में बैठा हूँ तमाशा बन कर
दिल दुखाने मिरे अहबाब कहाँ आते हैं


हाथ रख लेता हूँ दिल पर मैं तड़प कर देखो
मुझ को भी हिज्र के आदाब कहाँ आते हैं
हम से दीवाने मयस्सर ही नहीं दुनिया को
सीप में गौहर-ए-नायाब कहाँ आते हैं


इस मोहब्बत के सफ़र में है अज़िय्यत 'हमज़ा'
दश्त के बीच में तालाब कहाँ आते हैं
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