बहुत क़रीब था पर मेहरबाँ न था मेरा
By sabeensaifFebruary 28, 2024
बहुत क़रीब था पर मेहरबाँ न था मेरा
भरी बहार में इक आशियाँ न था मेरा
लबादा रूह का छलनी था जा-ब-जा लेकिन
मिरे क़रीब कोई मेहरबाँ न था मेरा
लहू में बहता है लेकिन ये एहतियात-ए-जुनूँ
कि राज़ दिल का नज़र से 'अयाँ न था मेरा
मैं ख़ुश-गुमाँ जिसे जागीर समझे बैठी थी
कि दिल पे उस के कहीं भी निशाँ न था मेरा
वो दश्त-ए-ज़ात में बरगद का पेड़ था लेकिन
झुलसती धूप में वो साएबाँ न था मेरा
ये और बात मिरे हाल से था ना-वाक़िफ़
मैं कैसे कह दूँ कि वो राज़-दाँ न था मेरा
बना था तर्क-ए-त'अल्लुक़ का जो सबब ऐ 'सबीन'
क़सम ख़ुदा की वो हरगिज़ बयाँ न था मेरा
भरी बहार में इक आशियाँ न था मेरा
लबादा रूह का छलनी था जा-ब-जा लेकिन
मिरे क़रीब कोई मेहरबाँ न था मेरा
लहू में बहता है लेकिन ये एहतियात-ए-जुनूँ
कि राज़ दिल का नज़र से 'अयाँ न था मेरा
मैं ख़ुश-गुमाँ जिसे जागीर समझे बैठी थी
कि दिल पे उस के कहीं भी निशाँ न था मेरा
वो दश्त-ए-ज़ात में बरगद का पेड़ था लेकिन
झुलसती धूप में वो साएबाँ न था मेरा
ये और बात मिरे हाल से था ना-वाक़िफ़
मैं कैसे कह दूँ कि वो राज़-दाँ न था मेरा
बना था तर्क-ए-त'अल्लुक़ का जो सबब ऐ 'सबीन'
क़सम ख़ुदा की वो हरगिज़ बयाँ न था मेरा
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