बद-क़िस्मती पे ज़ोर मिरा चल नहीं रहा
By hamza-bilalFebruary 26, 2024
बद-क़िस्मती पे ज़ोर मिरा चल नहीं रहा
ये हादिसा किसी भी तरह टल नहीं रहा
आसेब के वो साए मुसल्लत हैं इन दिनों
आँखों में एक ख़्वाब तलक पल नहीं रहा
जान-ए-बहार अब ये तकल्लुफ़ भी छोड़ दे
जब मैं तिरी निगाह में अव्वल नहीं रहा
क्या ख़ूब मो'जिज़ा है कि शो'ला-बदन के मैं
पहलू में आ गया हूँ मगर जल नहीं रहा
इस मसअले का हल तो फ़क़त आप थे हुज़ूर
अब आप कह रहे हैं कोई हल नहीं रहा
शे'र-ओ-सुख़न भी बंद है पिछले बरस से और
इस दिल का कारोबार भी अब चल नहीं रहा
'हमज़ा-बिलाल’ सख़्त है ऐसा बला का सख़्त
सब कुछ गँवा के हाथ तलक मल नहीं रहा
ये हादिसा किसी भी तरह टल नहीं रहा
आसेब के वो साए मुसल्लत हैं इन दिनों
आँखों में एक ख़्वाब तलक पल नहीं रहा
जान-ए-बहार अब ये तकल्लुफ़ भी छोड़ दे
जब मैं तिरी निगाह में अव्वल नहीं रहा
क्या ख़ूब मो'जिज़ा है कि शो'ला-बदन के मैं
पहलू में आ गया हूँ मगर जल नहीं रहा
इस मसअले का हल तो फ़क़त आप थे हुज़ूर
अब आप कह रहे हैं कोई हल नहीं रहा
शे'र-ओ-सुख़न भी बंद है पिछले बरस से और
इस दिल का कारोबार भी अब चल नहीं रहा
'हमज़ा-बिलाल’ सख़्त है ऐसा बला का सख़्त
सब कुछ गँवा के हाथ तलक मल नहीं रहा
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