अपनी चाहत को मिरे दुख के बराबर कर दे
By nomaan-shauqueFebruary 27, 2024
अपनी चाहत को मिरे दुख के बराबर कर दे
या मुझे देख ले इस तरह कि पत्थर कर दे
ये सिमटती हुई दुनिया ये बिखरते हुए लोग
इंतिहा कोई तो हर शय की मुक़र्रर कर दे
किस को देखूँ कि तिरे नाम का नश्शा उतरे
किस को चाहूँ जो तिरे सेहर को कमतर कर दे
मौसम-ए-वज्द में जा कर मैं कहाँ रक़्स करूँ
अपनी दुनिया मिरी वहशत के बराबर कर दे
एक खटका मुझे रहता है मोहब्बत में सदा
उस का क्या जब जिसे चाहे मिरा हम-सर कर दे
या मुझे देख ले इस तरह कि पत्थर कर दे
ये सिमटती हुई दुनिया ये बिखरते हुए लोग
इंतिहा कोई तो हर शय की मुक़र्रर कर दे
किस को देखूँ कि तिरे नाम का नश्शा उतरे
किस को चाहूँ जो तिरे सेहर को कमतर कर दे
मौसम-ए-वज्द में जा कर मैं कहाँ रक़्स करूँ
अपनी दुनिया मिरी वहशत के बराबर कर दे
एक खटका मुझे रहता है मोहब्बत में सदा
उस का क्या जब जिसे चाहे मिरा हम-सर कर दे
82985 viewsghazal • Hindi