अपने जुनूँ की ताज़ा हिकायत है आज भी
By saghir-ahmad-sufiFebruary 28, 2024
अपने जुनूँ की ताज़ा हिकायत है आज भी
दीवानगी ही शम'-ए-हिदायत है आज भी
तर्क-ए-त'अल्लुक़ात को बरसों गुज़र गए
लेकिन किसी की याद सलामत है आज भी
उन के हसीन तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल की ख़ैर हो
मेरी वफ़ा से जिन को शिकायत है आज भी
आया कभी था शहर-ए-निगाराँ से दिल-फ़िगार
पलकों पे सैल-ए-अश्क-ए-नदामत है आज भी
'सूफ़ी' ने कर दिया सर-ए-तस्लीम ख़म मगर
इस अंजुमन में ज़िक्र-ए-बग़ावत है आज भी
दीवानगी ही शम'-ए-हिदायत है आज भी
तर्क-ए-त'अल्लुक़ात को बरसों गुज़र गए
लेकिन किसी की याद सलामत है आज भी
उन के हसीन तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल की ख़ैर हो
मेरी वफ़ा से जिन को शिकायत है आज भी
आया कभी था शहर-ए-निगाराँ से दिल-फ़िगार
पलकों पे सैल-ए-अश्क-ए-नदामत है आज भी
'सूफ़ी' ने कर दिया सर-ए-तस्लीम ख़म मगर
इस अंजुमन में ज़िक्र-ए-बग़ावत है आज भी
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