अपने ही दिल में नहीं हर दिल में घर मैं ने किया

By mast-hafiz-rahmaniFebruary 27, 2024
अपने ही दिल में नहीं हर दिल में घर मैं ने किया
इस तरह से ज़िंदगी का तय सफ़र मैं ने किया
ख़ून-ए-दिल से 'उम्र-भर मैं ने सजाए बाम-ओ-दर
ज़िंदगी का लम्हा-लम्हा बा-हुनर मैं ने किया


उस ने बख़्शी 'इश्क़ के सहरा की मुझ को साहिबी
और हर ज़र्रे से उस को जल्वा-गर मैं ने किया
माह-ओ-अंजुम फ़िक्र की क़ीमत चुका सकते नहीं
अपने इक इक हर्फ़ को रश्क-ए-गुहर मैं ने किया


एक इक टहनी से मिलती थीं हज़ारों ने'मतें
फिर भी उन पेड़ों को बे-बर्ग-ओ-समर मैं ने किया
'मस्त' शा'इर हूँ मगर वाक़िफ़ हूँ अपने फ़र्ज़ से
बे-ख़बर रह कर भी सब को बा-ख़बर मैं ने किया


38718 viewsghazalHindi