अगर तुम्हारे नाम की नहीं रही
By sajid-raheemFebruary 28, 2024
अगर तुम्हारे नाम की नहीं रही
तो फिर ये 'उम्र काम की नहीं रही
जो छाज था अनाज का उलट गया
ग़िज़ा भी घर में शाम की नहीं रही
हमें वो मर्तबे 'अता किए गए
हमें किसी मक़ाम की नहीं रही
बदल दिए हैं नाम और मक़ाम सब
ये दास्ताँ तो काम की नहीं रही
कनीज़ आ गई पसंद शाम को
कनीज़ अब ग़ुलाम की नहीं रही
फ़ना को अब फ़ना में ही क़रार है
फ़ना को अब दवाम की नहीं रही
मिरे समेत घर से फेंक दी गई
हर एक शय जो काम की नहीं रही
भरा है पेट इस बदन को बेच कर
कमाई अब हराम की नहीं रही
तो फिर ये 'उम्र काम की नहीं रही
जो छाज था अनाज का उलट गया
ग़िज़ा भी घर में शाम की नहीं रही
हमें वो मर्तबे 'अता किए गए
हमें किसी मक़ाम की नहीं रही
बदल दिए हैं नाम और मक़ाम सब
ये दास्ताँ तो काम की नहीं रही
कनीज़ आ गई पसंद शाम को
कनीज़ अब ग़ुलाम की नहीं रही
फ़ना को अब फ़ना में ही क़रार है
फ़ना को अब दवाम की नहीं रही
मिरे समेत घर से फेंक दी गई
हर एक शय जो काम की नहीं रही
भरा है पेट इस बदन को बेच कर
कमाई अब हराम की नहीं रही
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