अगर सफ़र में मिरे साथ मेरा यार चले

By aalok-shrivastavApril 20, 2024
अगर सफ़र में मिरे साथ मेरा यार चले
तवाफ़ करता हुआ मौसम-ए-बहार चले
लगा के वक़्त को ठोकर जो ख़ाकसार चले
यक़ीं के क़ाफ़िले हमराह बे-शुमार चले


नवाज़ना है तो फिर इस तरह नवाज़ मुझे
कि मेरे बा'द मिरा ज़िक्र बार बार चले
ये जिस्म क्या है कोई पैरहन उधार का है
यहीं सँभाल के पहना यहीं उतार चले


ये जुगनुओं से भरा आसमाँ जहाँ तक है
वहाँ तलक तिरी नज़रों का इक़्तिदार चले
यही तो एक तमन्ना है इस मुसाफ़िर की
जो तुम नहीं तो सफ़र में तुम्हारा प्यार चले


79149 viewsghazalHindi