आँख छुप-छुप कर मिलाने का मज़ा कुछ और है
By bhagwan-khilnani-saqiFebruary 26, 2024
आँख छुप-छुप कर मिलाने का मज़ा कुछ और है
हाथों हाथों से छुड़ाने का मज़ा कुछ और है
इंतिज़ारी बे-क़रारी आह-ओ-ज़ारी सर-ब-सर
इस तरह दिल को जलाने का मज़ा कुछ और है
अब वो पहली सी मिरी शोहरत नहीं तो क्या हुआ
जीत कर भी हार जाने का मज़ा कुछ और है
साथ तेरे गीत गाने का मज़ा कुछ और था
अब अकेले गीत गाने का मज़ा कुछ और है
पोंह्च कर 'साक़ी' सर-ए-मंज़िल मज़ा आया बहुत
लौट कर मंज़िल से जाने का मज़ा कुछ और है
हाथों हाथों से छुड़ाने का मज़ा कुछ और है
इंतिज़ारी बे-क़रारी आह-ओ-ज़ारी सर-ब-सर
इस तरह दिल को जलाने का मज़ा कुछ और है
अब वो पहली सी मिरी शोहरत नहीं तो क्या हुआ
जीत कर भी हार जाने का मज़ा कुछ और है
साथ तेरे गीत गाने का मज़ा कुछ और था
अब अकेले गीत गाने का मज़ा कुछ और है
पोंह्च कर 'साक़ी' सर-ए-मंज़िल मज़ा आया बहुत
लौट कर मंज़िल से जाने का मज़ा कुछ और है
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