'आफ़ियत कहती है फिर एक सितमगर को बुलाएँ
By khursheed-rizviFebruary 27, 2024
'आफ़ियत कहती है फिर एक सितमगर को बुलाएँ
रेग-ए-साहिल की तरह अपने समुंदर को बुलाएँ
जो नज़र भी नहीं आता उसे दिल में रख लें
वो जो बाहर भी नहीं है उसे अंदर को बुलाएँ
ख़ार-ज़ारों का सफ़र है तो परेशानी क्या
आँख को बंद करें और गुल-ए-तर को बुलाएँ
है जो इक 'उम्र से सिमटा हुआ पस-मंज़र में
पेश-ए-मंज़र के लिए फिर उसी मंज़र को बुलाएँ
फिर उफ़ुक़ को है वही चाँद सा चेहरा मतलूब
और हवाएँ भी उसी ज़ुल्फ़-ए-मो’अम्बर को बुलाएँ
रास्ते भटके हुए क़दमों को आवाज़ें दें
सीपियाँ मौज में घुलते हुए गौहर को बुलाएँ
रेग-ए-साहिल की तरह अपने समुंदर को बुलाएँ
जो नज़र भी नहीं आता उसे दिल में रख लें
वो जो बाहर भी नहीं है उसे अंदर को बुलाएँ
ख़ार-ज़ारों का सफ़र है तो परेशानी क्या
आँख को बंद करें और गुल-ए-तर को बुलाएँ
है जो इक 'उम्र से सिमटा हुआ पस-मंज़र में
पेश-ए-मंज़र के लिए फिर उसी मंज़र को बुलाएँ
फिर उफ़ुक़ को है वही चाँद सा चेहरा मतलूब
और हवाएँ भी उसी ज़ुल्फ़-ए-मो’अम्बर को बुलाएँ
रास्ते भटके हुए क़दमों को आवाज़ें दें
सीपियाँ मौज में घुलते हुए गौहर को बुलाएँ
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