'आदत-ए-शब-बेदारी बढ़ती जाती है

By jamal-ehsaniFebruary 26, 2024
'आदत-ए-शब-बेदारी बढ़ती जाती है
जब से गिर्या-ओ-ज़ारी बढ़ती जाती है
ज़ीस्त में जब से दर आई है इक तरतीब
साँस की ना-हमवारी बढ़ती जाती है


उस की अना भी कम नहीं होती पल-भर को
मेरी भी बीमारी बढ़ती जाती है
जिस को ख़बर है उस को नहीं है कोई ग़रज़
क्यों मेरी मय-ख़्वारी बढ़ती जाती है


हालत ये है मेल नहीं कुछ दोनों में
सूरत ये है यारी बढ़ती जाती है
पहले जो ना-मुम्किन था मुमकिन है अब
मेरी तो दुश्वारी बढ़ती जाती है


30505 viewsghazalHindi