उस के जैसा कोई मिला ही नहीं ...
उस के दिल में जो बंद रहता है ...
उस से उस के बग़ैर बातें कीं ...
तुम्हें बस ये बताना चाहता हूँ ...
तुम हमारे क़रीब आने को ...
तिरी आवाज़ धीमी हो रही है ...
तिरी आमद की लागत बढ़ रही है ...
तिरे कूचे में पहरा बढ़ गया है ...
तिरे ग़म की जब तक सुई चल रही है ...
तिरे दर की हिमायत मिल गई है ...
सितारे आ गए ज़िक्र-ए-गुलाब ख़त्म हुआ ...
साँप भी बीन भी मदारी भी ...
समुंदर उल्टा-सीधा बोलता है ...
सामने हो तो बस इशारा कर ...
रात उस को रुला दिया मैं ने ...
पहले एहसास में उतार उसे ...
नक़ली हैं सब ताले-ताली ...
नहीं आते हैं हम अपनी समझ में ...
नए दरिया से रिश्ता हो गया है ...
मुँह में जब तक ज़बान बाक़ी है ...